प्रणब मुखर्जी के अनमोल विचार

  • कभी कभी समझौता बुरा नहीं होता; कभी कभी पूर्ण सत्ता से समस्याएं पैदा होती है। एक पुरानी कहावत है कि “सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता पूर्णतः भ्रष्ट करती है।”

हम सभी को हर चीज की एक कीमत चुकानी होती है।

  • जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है; उसके उपदेश देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं है।
  • हमारी शिक्षा प्रणाली द्वारा रुकावटों को सामान्य घटना के रूप में स्वीकार करना चाहिए और विद्यार्थियों को रुकावटों से निपटने और आगे बढ़ने के लिए तैयार करना चाहिए।
  • गरीबी मिटाने से खुशहाली में भरपूर तेजी आएगी।

भारत की संसद मेरे दिल मे रहा है और भारत की जनता की सेवा मेरा अभिलाषा रही है।

  • एक स्वस्थ, खुशहाल और सार्थक जीवन प्रत्येक नागरिक का बुनियादी अधिकार है।
  • भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं है। जिसमें विचारों, दर्शन, बौद्धिकता, औद्योगिक प्रतिभा, शिल्प, नवान्वेषण और अनुभव का इतिहास शामिल है।
  • जहां भी मेरी भाग्य ने मुझे पहुंचाया है; मैं उस ऊंचाई पर खुश हूं।
  • जितना मैंने दिया है उससे कहीं अधिक; मुझे इस देश के लोगों और संसद से मिला है।
  • सहृदयता और सहानुभूति की क्षमता हमारी सभ्यता की सच्ची नीव है।

विकास को वास्तविक बनाने के लिए देश के सबसे गरीब को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्रीय गाथा का एक भाग है।

  • पिताजी ने मुझे आत्म सम्मान का मूल्य सिखाते हुए, इसे बनाए रखने का महत्व समझाया था।
  • मैं कोई विरासत नहीं छोड़ना चाहता क्योंकि यह लोकतंत्र है। लोकतंत्र एक समूह है जो मैं इस समूह का हिस्सा हूं। मैं इस समूह में भूल जाऊंगा। हवा में घुल जाऊंगा। मैं लोगों के बीच रहना चाहूंगा, मैं कोई विरासत नहीं छोडूंगा।
  • खुशहाली मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
  • हमें गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी नीतियों के फायदे पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।
  • एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण कुछ आवश्यक मूल तत्वो–प्रत्येक नागरिक के लिए लोकतंत्र अथवा समान अधिकार, प्रत्येक पंथ के लिए निरपेक्ष अथवा समान स्वतंत्रता, प्रत्येक प्रांत की समानता तथा आर्थिक समता पर होती है।

संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता में भारत को विशेष बनाती है।

  • सुशासन से लोग पारदर्शिता, जवाबदेही और सहभागी राजनीतिक संस्थाओं के माध्यम से अपना जीवन सवार पाएंगे।
  • पिछले 50 वर्षों के सार्वजनिक जीवन के दौरान भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है।
  • सदियों के दौरान, विचारों को आत्मसात करके हमारे समाज का बहुलवाद निर्मित हुआ है।
  • हमारे लिए समावेशी समाज का निर्माण विश्वास का एक विषय होना चाहिए।
  • हमें अपने जनसंवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा।
  • हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। यह शताब्दियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है।

खुशहाली समान रूप से आर्थिक और गैर आर्थिक मानदंडों परिणाम है। खुशहाली का लक्ष्य सतत विकास के उस लक्ष्य के साथ मजबूती से बधा हुआ है जो मानव बेहतरी, समाज मे समावेशन और पर्यावरणीय स्थिरता का मिश्रण है।

  • शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकता है। शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति से समाज को पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है। इसके लिए हमें अपने उच्च संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाना होगा।
  • जनसंवाद के विभिन्न पहलू हैं हम तर्क वितर्क कर सकते हैं। हम सहमत हो सकते हैं या हम सहमत नहीं हो सकते हैं, परंतु हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते; अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा।
  • प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता,भय और अविश्वास है।
  • गांधी जी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे; जहां आबादी का प्रत्येक वर्ग समानता के साथ रहता हो और समान अवसर प्राप्त करता हो। चाहते थे कि हमारे लोग एकजुट होकर निरंतर व्यापक हो रहे विचारों और कार्यों की दिशा में आगे बढ़ें।
  • एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों विशेषकर पिछड़ी और वंचितो की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है।

कल, जब मैं आपसे बात करूंगा तो राष्ट्रपति के रुप में नहीं बल्कि आपकी तरह एक ऐसे नागरिक के रूप में बात करुंगा; जो महानता की दिशा में, भारत की प्रगति के पथ का एक यात्री है।

  • हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जागरत करना होगा।
  • भारत हम में से हर एक से यह अपेक्षा रखता है कि राष्ट्र निर्माण की इस जटिल कार्य में हम जो भी भूमिका निभा रहे हैं, उसे हम ईमानदारी, समर्पण और हमारे संविधान में स्थापित मूल्यों के प्रति दृढ़ निष्ठा के साथ निभाएं।
  • पर्यावरण की सुरक्षा हमारे अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। प्रकृति हमारे प्रति पूरी तरह उदार रही है परंतु जब लालच आवश्यकता की सीमा को पार कर जाता है, तो प्रकृति अपना प्रकोप दिखाती है।