दलाई लामा के अनमोल वचन – Dalai Lama Hindi Quotes

  • हमारे जीवन का उद्देश्य प्रसन्न रहना है।
  • प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं। उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
  • मेरा धर्म बहुत सरल है। मेरा धर्म दयालुता है।
  • कभी-कभी लोग कुछ कहकर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं, और कभी-कभी लोग चुप रहकर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं।

अपनी क्षमताओं को जानकार और उनमे यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं।

  • हम बाहरी दुनिया में कभी शांति नहीं पा सकते हैं, जब तक कि हम अंदर से शांत न हों।
  • मंदिरों की आवश्यकता नहीं है, न ही जटिल तत्वज्ञान की। मेरा मस्तिष्क और मेरा ह्रदय मेरे मंदिर हैं, मेरा दर्शन दयालुता है।
  • पुराने मित्र छूटते हैं, नए मित्र बनते हैं। यह दिनों की तरह ही है। एक पुराना दिन बीतता है, एक न्य दिन आता है। महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे सार्थक बनाएं: एक सार्थक मित्र या एक सार्थक दिन।
  • यह जरुरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और ह्रदय जितना संभव हो अच्छा करें। इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आएंगी।
  • नींद सबसे अच्छा चिंतन है।

जब कभी संभव हो दयालु बने रहिए। यह हमेशा संभव है।

  • जब आप कुछ गंवा बैठते है तो उससे प्राप्त शिक्षा को न गंवाएं।
  • एक छोटे से विवाद से एक महान रिश्ते को घायल मत होने देना।
  • प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है। ये आप ही के कर्मों से आती है।
  • सहिष्णुता के अभ्यास में, आपका शत्रु ही आपका सबसे अच्छा शिक्षक होता है।

अगर आप यह सोचते हैं कि आप बहुत छोटे हैं तो एक मछार के साथ सोकर देखिए।

  • जब तक हम अपने आप से सुलह नहीं कर लेते तब तक दुनिया से भी सुलह नहीं कर सकते।
  • प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं,विलासिता नहीं उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
  • अगर आपकी कोई विशेष निष्ठा या धर्म है, तो अच्छा है। लेकिन आप उसके बिना भी जी सकते हैं।
  • अपनी क्षमताओं को जानकार और उनमे यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं।
  • हम बाहरी दुनिया में कभी शांति नहीं पा सकते हैं, जब तक कि हम अंदर से शांत न हों।
  • हम धर्म और ध्यान के बिना रह सकते हैं, लेकिन हम मानव स्नेह के बिना जीवित नहीं रह सकते।

अपनी क्षमताओं को जानकार और उनमें यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं।

  • अगर आप दूसरों को खुश देखना चाहते है तो सहानुभूति को अपनाईये। अगर आप खुश होना चाहते हैं तो सहानुभूति अपनाईये।
  • मंदिरों की आवश्यकता नहीं है, न ही जटिल तत्वज्ञान की। मेरा मस्तिष्क और मेरा ह्रदय मेरे मंदिर हैं, मेरा दर्शन दयालुता है।
  • अगर आप दूसरों की मदद कर सकते हैं, तो अवश्य करें, अगर नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाईए।

अगर आप दूसरों को प्रसन्न देखना चाहते हैं तो करुणा का भाव रखें। अगर आप खुद प्रसन्न रहना चाहते हैं तो भी करुना का भाव रखें।

  • कभी-कभी लोग कुछ कहकर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं, और कभी-कभी लोग चुप रहकर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं।
  • सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ मूल रूप से एक ही संदेश देती है-प्रेम, दया और क्षमा, महत्वपूर्ण बात यह है कि ये हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होनी चाहियें।

अगर आपकी कोई विशेष निष्ठा या धर्म है, तो अच्छा है। लेकिन आप उसके बिना भी जी सकते हैं।