श्रीमद्भगवद गीता के उद्धरण: जीवन, कर्म और धर्म पर अमूल्य उपदेश

World Food Day is an international day celebrated every year around the world on 16 October in honor of the date of the founding of the Food and Agriculture Organization of the United Nations in 1945. The day is celebrated widely by many other organizations concerned with food security, including the World Food Programme and the International Fund for Agricultural Development.

भगवद्गीता न केवल आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंध को स्पष्ट करती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि हमें अपने जीवन में कैसे जीना चाहिए, किस प्रकार कर्म करना चाहिए, और अपने धर्म का पालन कैसे करना चाहिए।

जीवन (Life) – आत्मा की अमरता और मानसिक स्थिरता

गीता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण संदेश है — “तुम यह शरीर नहीं हो, आत्मा हो।” जब हम यह समझ जाते हैं कि हमारा वास्तविक स्वरूप आत्मा है, तो जीवन के दुख-सुख, हानि-लाभ, जन्म-मृत्यु हमें प्रभावित नहीं करते।

जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं। जब हम अपने जीवन को केवल एक सांसारिक यात्रा मानते हैं, तो हम हर छोटी-बड़ी बात से प्रभावित हो जाते हैं। परंतु गीता हमें सिखाती है कि जीवन एक सतत यात्रा है — आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है, वह शाश्वत है।

कर्म (Action) – निष्काम कर्म और फल की अपेक्षा त्यागना

भगवद्गीता का सबसे प्रसिद्ध और गूढ़ उपदेश है – “कर्म करो, फल की चिंता मत करो।” इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम अपने कर्मों के प्रति लापरवाह हो जाएँ, बल्कि इसका आशय यह है कि हमें पूरे मन से, पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ कर्म करना चाहिए, लेकिन फल की चिंता छोड़ देनी चाहिए।

आधुनिक जीवन में हम परिणामों की दौड़ में इतना उलझ जाते हैं कि अपने कर्म का आनंद ही भूल जाते हैं। यह चिंता, तनाव और असंतोष का कारण बनती है। गीता हमें यह ज्ञान देती है कि फल पर नहीं, प्रयास पर ध्यान केंद्रित करें।

धर्म (Dharma) – स्वधर्म का पालन और आत्मनिर्भरता

गीता धर्म को केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं रखती, बल्कि इसे कर्तव्य और स्वधर्म के रूप में परिभाषित करती है। हर व्यक्ति का स्वधर्म होता है, जो उसके स्वभाव, परिस्थिति और जीवन के उद्देश्य पर आधारित होता है। दूसरों के धर्म या कार्य की नकल करना आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।

जब अर्जुन अपने कर्तव्य से विचलित हो जाता है, तब श्रीकृष्ण उसे याद दिलाते हैं कि युद्धभूमि से भागना उसका धर्म नहीं है। अपने स्वधर्म के अनुसार कर्म करना ही सच्चा जीवन है।

आध्यात्मिक जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य के लिए गीता के लाभ

  • तनाव और चिंता से मुक्ति: जब हम फल की चिंता छोड़ते हैं, तो मानसिक रूप से शांति प्राप्त होती है।
  • निर्णय लेने की शक्ति: गीता आत्मा, बुद्धि और विवेक को जागृत करती है, जिससे निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
  • आत्मविश्वास में वृद्धि: अपने धर्म और कर्म पर ध्यान केंद्रित करके व्यक्ति आत्मविश्वासी बनता है।
  • दुःख-सुख में समता: गीता सिखाती है कि जीवन में दोनों अवस्थाएँ अस्थायी हैं, अतः समभाव आवश्यक है।

श्रीमद्भगवद्गीता जीवन के हर पहलू का मार्गदर्शन करती है। यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यदि हम इसके उपदेशों को आत्मसात करें, तो जीवन में शांति, संतुलन और उद्देश्य की प्राप्ति संभव है।